याद में जिस की नहीं होशे तनो जां हम को

याद में जिस की नहीं होशे तनो जां हम को

फिर दिखा दे वोह रुख़, ऐ मेहरे फ़रोज़ां ! हम को

देर से आप में आना नहीं मिलता है हमें

क्या ही ख़ुद-रफ़्ता किया जल्वए जानां ! हम को

जिस तबस्सुम ने गुलिस्तां पे गिराई बिजली

फिर दिखा दे वोह अदा ए गुले ख़न्दां हमको

काश आवीज़-ए क़िन्दीले मदीना हो वोह दिल

जिस की सोज़िश ने किया रश्के चराग़ां हम को

अ़र्श जिस ख़ूबी ए रफ़्तार का पामाल हुआ

दो क़दम चल के दिखा सर्वे ख़िरामां ! हम को

शम्ए़ त़यबा से मैं परवाना रहूं कब तक दूर

हां जला दे श-ररे आतिशे पिन्हां ! हम को

ख़ौफ़ है सम्अ़ ख़राशिये सगे त़यबा का

वरना क्या याद नहीं ना-लओ अफ़्ग़ां हम को

ख़ाक हो जाएं दरे पाक पे ह़सरत मिट जाए

या इलाही न फिरा बे सरो सामां हम को

ख़ारे सह़रा-ए-मदीना न निकल जाए कहीं

वह़्‌शते दिल न फिरा कोहो बयाबां हम को

तंग आए हैं दो आलम तेरी बेताबी से

चैन लेने दे तपे सीनए सोज़ां हम को

पाऊं ग़िरबाल हुए राहे मदीना न मिली

ऐ जुनूं ! अब तो मिले रुख़्सते ज़िन्दां हम को

मेरे हर ज़ख़्मे जिगर से यह निकलती है सदा

ऐ मलीह़े अ़-रबी ! कर दे नमक दां हम को

सैरे गुलशन से असीराने क़फ़स को क्या काम

न दे तक्लीफ़े चमन बुलबुले बुस्तां हम को

जब से आंखों में समाई है मदीने की बहार

नज़र आते हैं ख़ज़ां-दीदा गुलिस्तां हम को

गर लबे पाक से इक़रारे शफ़ाअ़त हो जाए

यूं न बेचैन रखे जोशिशे इ़स्यां हम को

नय्यरे ह़श्र ने इक आग लगा रख्खी है !

तेज़ है धूप मिले सायए दामां हम को

रह़्‌म फ़रमाइये या शाह कि अब ताब नहीं

ता-ब-के ख़ून रुलाए ग़मे हिज्रां हम को

चाके दामां में न थक जाइयो ऐ दस्ते जुनूं

पुर्ज़े करना है अभी जेबो गिरीबां हम को

पर्दा उस चेह्‌रए अन्वर से उठा कर इक बार

अपना आईना बना, ऐ महे ताबां ! हम को

ऐ रज़ा वस्फ़े रुख़े पाक सुनाने के लिये

नज्ऱ देते हैं चमन, मुर्ग़े ग़ज़ल ख़्वां हम को
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