आंखें रो रो के सुजाने वाले

आंखें रो रो के सुजाने वाले

आंखें रो रो के सुजाने वाले

जाने वाले नहीं आने वाले

कोई दिन में यह सरा ऊजड़ है

अरे ओ छाउनी छाने वाले

ज़ब्ह़ होते हैं वत़न से बिछड़े

देस क्यूं गाते हैं गाने वाले

अरे बद फ़ाल बुरी होती है

देस का जंगला सुनाने वाले

सुन लें आदा मैं बिगड़ने का नहीं

वोह सलामत हैं बनाने वाले

आंखें कुछ कहती हैं तुझ से पैग़ाम

ओ दरे यार के जाने वाले

फिर न करवट ली मदीने की त़रफ़

अरे चल झूंटे बहाने वाले

नफ़्स मैं ख़ाक हुआ तू न मिटा

है ! मेरी जान के खाने वाले

जीते क्या देख के हैं ऐ हूरो !

त़ैबा से ख़ुल्द में आने वाले

नीम जल्वे में दो आलम गुलज़ार

वाह वा रंग जमाने वाले

ह़ुस्न तेरा सा न देखा न सुना

कहते हैं अगले ज़माने वाले

वोही धूम उन की है माशाअल्लाह

मिट गए आप मिटाने वाले

लबे सैराब का सदक़ा पानी

ऐ लगी दिल बुझाने वाले

साथ ले लो मुझे मैं मुजरिम हूं

राह में पड़ते हैं थाने वाले

हो गया धक से कलेजा मेरा

हाए रुख़्सत की सुनाने वाले

ख़ल्क़ तो क्या कि हैं ख़ालिक़ को अ़ज़ीज़

कुछ अ़जब भाते हैं भाने वाले

कुश्त-ए-दश्ते ह़रम जन्नत की

खिड़कियां अपने सिरहाने वाले

क्यूं रज़ा आज गली सूनी है

उठ मेरे धूम मचाने वाल
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