सरवर कहूं के मालिको मौला कहूं तुझे
सरवर कहूं के मालिको मौला कहूं तुझे
सरवर कहूं कि मालिको मौला कहूं तुझे
बाग़े ख़लील का गुले ज़ैबा कहूं तुझे
ह़िरमां नसीब हूं तुझे उम्मीदे गह कहूं
जाने मुरादो काने तमन्ना कहूं तुझे
गुलज़ारे क़ुद्स का गुले रंगी अदा कहूं
दरमाने दर्दे बुलबुले शैदा कहूं तुझे
सुब्ह़े वत़न पे शामे ग़रीबां को दूं शरफ़
बेकस नवाज़ गेसूओं वाला कहूं तुझे
अल्लाह रे तेरे जिस्मे मुनव्वर की ताबिशें
ऐ जाने जां मैं जाने तजल्ला कहूं तुझे
बे दाग़ लालह या क़-मरे बे कलफ़ कहूं
बे ख़ार गुलबुने चमन-आरा कहूं तुझे
मुजरिम हूं अपने अ़फ़्व का सामां करूं शहा
या’नी शफ़ीअ़ रोज़े जज़ा का कहूं तुझे
इस मुर्दा दिल को मुज़्दा ह़याते अबद का दूं
ताबो तुवाने जाने मसीह़ा कहूं तुझे
तेरे तो वस्फ़ ऐ़बे तनाही से हैं बरी
ह़ैरां हूं मेरे शाह मैं क्या क्या कहूं तुझे
कह लेगी सब कुछ उन के सना ख़्वां की ख़ामुशी
चुप हो रहा है कह के मैं क्या क्या कहूं तुझ
लेकिन रज़ा ने ख़त्म सुख़न इस पे कर दिया
ख़ालिक़ का बन्दा ख़ल्क़ का आक़ा कहूं तुझे