रौनक़े बज़में दो जहां है आशिक़ाने सोख़्ता
रौनक़े बज़में दो जहां है आशिक़ाने सोख़्ता
कह रही है शम्आ़ की गोया ज़बाने सोख़्ता
जिस को कुर्से मेह़र समझा है जहां ऐ मुन्इ़मो !
उनके ख़्वाने जूद से है एक नाने सोख़्ता
माहे मन यह नय्यरे मह़शर की गरमीं ताब-के
आतशे इ़श्यां में खुद जलती है जाने सोख़्ता
बर्क़े अंगुश्ते नबी चमकी थी उस पर एक बार
आज तक है सीनए मह में निशाने सोख़्ता
मेहरे आ़लम ताब झुकता है पए तसलीम रोज़
पेशे ज़र्राते मज़ारे बे दिलाने सोख़्ता
कूचए गेसूए जानां से चले ठन्डी नसीम
बालो पर अफ़्शां हों या रब बुलबुलाने सोख़्ता
बह़रे हक़ ऐ बहरे रह़मत इक निगाहे लुत्फ़ बार
ताब-के बे आब तड़पें माहियाने सोख़्ता
रु कशे खुरशीदे मह़शर हो तुम्हारे फ़ैज़ से
इक शरारे सीनए शैदाईयाने सोख़्ता
आतशे दर दामनी ने दिल किये क्या क्या कबाब
ख़िज़र की जां हो जिला दो माहियाने सोख़्ता
आतशे गुलहाए त़यबा पर जलाने के लिए
जान के त़ालिब हैं प्यारे बुलबुलाने सोख़्ता
लुत्फ़े बर्क़े जल्वए मेराज लाया वज्द में
शोलए जव्वाला सां है आस्माने सोख़्ता
ऐ रज़ा मज़मून सोज़े दिल की रिफ़अ़त ने किया
इस ज़मीने सोख़्ता को आस्माने सोख़्ता