पुल से उतारो राह गुज़र को ख़बर न हो

पुल से उतारो राह गुज़र को ख़बर न हो

जिब्रील पर बिछाएं तो पर को ख़बर न हो

कांटा मेरे जिगर से ग़मे रोज़गार का

यूं खींच लीजिये कि जिगर को ख़बर न हो

फ़रियाद उम्मती जो करें ह़ाले ज़ार में

मुम्किन नहीं कि ख़ैरे बशर को ख़बर न हो

कहती थी यह बुराक़ से उस की सबुक-रवी

यूं जाइये कि गर्दे सफ़र को ख़बर न हो

फ़रमाते हैं यह दोनों हैं सरदारे दो जहां

ऐ मुर्तज़ा ! अ़तीक़ो उ़मर को ख़बर न हो

ऐसा गुमा दे उन की विला में ख़ुदा हमें

ढूंढा करे पर अपनी ख़बर को ख़बर न हो

आ दिल ! ह़रम को रोकने वालों से छुप के आज

यूं उठ चलें कि पहलूओ बर को ख़बर न हो

त़ैरे ह़रम हैं यह कहीं रिश्ता बपा न हो

यूं देखिये कि तारे नज़र को ख़बर न हो

ऐ ख़ारे त़यबा ! देख कि दामन न भीग जाए

यूं दिल में आ कि दीदए तर को ख़बर न हो

ऐ शौक़े दिल ! यह सज्दा गर उन को रवा नहीं

अच्छा ! वोह सज्दा कीजे कि सर को ख़बर न हो

उन के सिवा रज़ा कोई ह़ामी नहीं जहां

गुज़रा करे पिसर पे पिदर को ख़बर न हो
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