अर्श की अ़क़ल दंग है चर्ख़ में आस्मान है

अर्श की अ़क़ल दंग है चर्ख़ में आस्मान है

अ़र्श की अ़क़्ल दंग है चर्ख़ में आस्मान है

जाने मुराद अब किधर हाए तेरा मकान है

बज़्में सनाए जुल्फ़ में मेरी अ़रुसे फ़िक्र को

सारी बहारे हश्त खुल्द छोटा सा इ़त्रदान है

अ़र्श पे जाके मुर्ग़े अ़क़्ल थक के गिरा ग़श आ गया

और अभी मन्ज़िलों परे पहला ही आस्तान है

अ़र्श पे ताज़ा छेड़ छाड़ फ़र्श में तुरफ़ा धूम धाम

कान जिधर लगाइये तेरी ही दास्तान है

इक तेरे रुख़ की रोशनी चैन है दो जहान की

इन्स का उस उसी से है जान की वोह ही जान है

वोह जो न थे तो कुछ न था वोह जो न हों तो कुछ न हो

जान हैं वोह जहान की जान है तो जहान है

गोद में आलमे शबाब ह़ाले शबाब कुछ न पूछ !

गुलबुने बाग़े नूर की और ही कुछ उठान है

तुझ सा सियाहकार कौन उन सा शफ़ीआ़ है कहां

फिर वोह तुझी को भूल जाएं दिल यह तेरा गुमान है

पेशे नज़र वोह नौ बहार सज्दे को दिल है बे क़रार

रोकिये सर को रोकिये हां यही इम्तिह़ान है

शाने खुदा न साथ दे उनके ख़िराम का वोह बाज़

सिदरा से ता ज़मीं जिसे नर्म सी इक उड़ान है

बारे जलाल उठा लिया गर्चे कलेजा शक़ हुआ

यूं तो यह माहे सब्जा रंग नज़रों में धान पान है

ख़ौफ़ न रख रज़ा ज़रा तू तो है अब्दे मुस्तफ़ा

तेरे लिए अमान है तेरे लिए अमान है
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